भव्य स्वागत जुलूस संग नवसारीवासियों ने किया स्वागत, तेरापंथ भवन में हुआ मंगल प्रवास
-दुर्गति से बचा सकती है अध्यात्म की साधना : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण
-आस्थासिक्त भावों को नवसारीवासियों ने दी अभिव्यक्ति
11.05.2023, गुरुवार, नवसारी, सूरत (गुजरात) :
गुजरात की धरती को अपने पदरज से पावन करने जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग भारत की मायानगरी मुम्बई की ओर गतिमान है। मुम्बई की ओर गतिमान शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अणुव्रत यात्रा के साथ गुरुवार को नवसारी में पधारे। नवसारीवासियों ने अपने आराध्य का भावभीना अभिनंदन किया। लगभग बीस वर्षों बाद अपने सुगुरु को अपने नगर में पाकर लोगों का उत्साह अपने चरम पर था। उनका उत्साह भव्य स्वागत जुलूस में स्पष्ट दिखाई दे रहा था। भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री नवसारी में स्थित नवनिर्मित तेरापंथ भवन में पधारे।
गुरुवार को प्रातः की मंगल बेला में वाघेच गांव से शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल प्रस्थान किया। विहार मार्ग के दोनों ओर दूर-दूर तक आम के वृक्षों की कतारें इस क्षेत्र में आम की बहुलता को दर्शा रहे थे। खेतों में लगे गन्ने के पौधे से धरती हरियाली से युक्त नजर आ रही थी, किन्तु सूर्य के प्रखर आतप ने मौसम के मिजाज को गर्म बनाना प्रारम्भ कर दिया था। आसमान में चढ़ते सूर्य की तेज किरणों से धरती मानों तवे के समान जलने लगी, किन्तु दृढ़संकल्पी आचार्यश्री महाश्रमणजी निरंतर गतिमान थे। लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री नवसारी में स्थित तेरापंथ भवन में पधारे।
मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि उत्तराध्ययन आगम के आठवें अध्ययन में एक प्रश्न किया गया है कि यह संसार अधु्रव और दुःख बहुल है। ऐसा कौन सा कार्य किया जाए, जिससे आदमी इस दुर्गति से बच सके। शास्त्रकार ने इसका उत्तर देते हुए बताया कि अध्यात्म की साधना और वीतरागता के पथ को स्वीकार कर आदमी दुर्गति से अपना बचाव कर सकता है।
यह जीवन अधु्रव है, अशाश्वत है। जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु सुनिश्चित है। इसलिए आदमी को अपने जीवन में धर्म अध्यात्म की साधना करने का निरंतर प्रयास करना चाहिए। मृत्यु से कोई बच नहीं सकता। ऐसा कोई नहीं जिसकी मृत्यु के साथ दोस्ती हो, कोई इतना तीव्र धावक नहीं जो मृत्यु से तेज भाग सके और कोई अमर नहीं, जिसे मृत्यु न मार सके। इसलिए आदमी को दुःखों से मुक्त होने की अध्यातम की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी ने बारह वर्ष की अवस्था में साधुत्व को स्वीकार कर लिया था। आचार्यश्री ने नवसारी आगमन के संदर्भ में कहा कि यहां की जनता में आपसी सद्भाव बना रहे। सबके प्रति मंगल मैत्री के भाव पुष्ट होते रहें।
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