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किसके लिए कितना अहम सियासी दंगल?

नई दिल्लीयूपी में आज तीसरे दौर का मतदान शुरू हो गया है. 12 जिलों की 69 सीट पर 826 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला आज जनता करेगी. 11 मार्च को ईवीएम खिलने के साथ ही जनता की पसंद सामने जाएगी. यूपी की कमान किसके हाथ जाएगी, ये तो वक्त और जनता तय करेंगे लेकिन ये चुनाव सियासी दिग्गजों के लिए बेहद अहम हैं. पीएम मोदी, अखिलेश यादव, राहुल गांधी और मायावती के लिए इस बार का चुनाव कई मायनों में आर या पार का है.
यूपी चुनाव में जीत के लिए बीजेपी और खुद पीएम मोदी जी-जान लगाए हुए हैं. देश के सबसे बड़े राज्य में सत्ता हासिल करने की चुनौती है. इस चुनाव में मोदी के सामने यूपी में लोकसभा चुनाव वाली बड़ी जीत दोहराने की चुनौती है, 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में बीजेपी को 80 में से 71 सीटें मिली थी.
आज जिन सीटों पर वोटिंग हो रही है, वहां लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 52 सीटों पर बढ़त मिली थी. इस करिश्मे को कायम रखने की चुनौती है. इस फेज के लिए मोदी ने 3 रैलियां की हैं
ये चुनाव इसलिए भी अहम है क्योंकि नोटबंदी के बाद ये पहला बड़ा चुनाव है. अगर यूपी में सत्ता मिली तो बीजेपी के लिए राज्यसभा में भी सीटों का संकट कम होगा.
यूपी में अगर बीजेपी को सत्ता मिली, तो एक बार साबित हो जाएगा कि पार्टी के लिए मोदी से बड़ा चेहरा कोई नहीं है, जीत से पीएम मोदी का कद और बढ़ेगा और इससे 2019 के लोकसभा चुनाव की राह आसान होगी, हारे तो मोदी की लोकप्रियता पर सवाल उठेंगे.
आज के चरण की 69 सीटों में से पिछली बार एसपी को सबसे ज्यादा 55 सीटें मिली थीं. जाहिर है इसे बचाने के साथ ही अपने यादव वोट बैंक को भी बचाने की चुनौती है. यानी अखिलेश की असली अग्निपरीक्षा आज ही है.
वोटिंग वाले 12 जिलों में से इटावा में 27 फीसद, मैनपुरी में 25 , कन्नौज में 18 और फर्रुखाबाद- उन्नाव में 11-11 फीसद, हरदोई और औरैया में 8-8 फीसद, सीतापुर और कानपुर देहात में 7, कानपुर और बाराबंकी में 5-5 फीसद और लखनऊ में 4 फीसद यादव हैं.
अखिलेश जीते तो पार्टी पर पूरी तरह पकड़ बनेगी. अगर हार गए तो उनके नेतृत्व पर तो सवाल उठेगा ही पार्टी और परिवार में चल रहा विवाद और बढ़ेगा. यही नहीं कांग्रेस से गठबंधन के बड़े राजनीतिक फैसले का भी टेस्ट हो रहा है. अगर अखिलेश हारे तो उन्हें राहुल से ज्यादा नुकसान होगा क्यों कि कांग्रेस के लिए यूपी में खोने के लिए कुछ है नहीं.
राहुल गांधी के लिए ये चुनाव इसलिए भी अहम है क्योंकि अखिलेश से उनकी दोस्ती की ये सबसे बड़ी परीक्षा होगी. राहुल के लिए मुस्लिम वोट का बंटवारा रोकना भी बड़ी चुनौती होगी. इसके साथ ही दलित और अगड़े वोटों को पक्ष में लाने की चुनौती होगी. अगर कामयाब हुए तो दोस्ती कामयाब होगी और आगे के चुनाव में भी इसका फायदा होगा.
इस चुनाव में कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन से दो साल बाद 2019 में होने वाले आम चुनाव में भी राहुल और उनकी पार्टी अच्छे दिन की उम्मीद कर सकती है, लेकिन हारे तो राहुल की राजनीति के साथ उनके अखिलेश के साथ गठबंधन पर भी बड़े सवाल उठेंगे.
पिछले चुनाव में दलित और ब्रह्ममणों का समीकरण गड़बड़ाने के बाद मायावती ने इस बार इसी समीकरण को ठीक करने की कोशिश की है. यूपी में 21 फीसद दलित वोट हैं जबकि मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 19 फीसद है. आज होने वाले तीसरे चरण बात करें तो 69 सीटों पर 17 फीसद मुस्लिम और करीब 25 फीसद दलित वोटर हैं.

उनके लिए तीसरा चरण इसलिए भी अहम है, क्योंकि दलित और मुस्लिम वोटरों को एकजुट करने की चुनौती है, पिछली बार मायावती को 69 में से महज 6 सीटें मिली थीं, इसलिए ये परिणाम बदलने की चुनौती है, मायावती का ये फॉर्मूला फेल हुआ तो पार्टी में उनके नेतृत्व पर सवाल उठ सकते हैं.
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